फ्रांस, भारत और इंडो-पैसिफिक: वैकल्पिक रणनीतिक ढांचे की प्रयास

इंडो-पसिफ़िक में फ्रांस एक ऐसी शक्ति है, जिसके भारत और प्रशांत महासागर के दोनों तरफ क्षेत्र मौजूद है

By Paras Ratna, Research Associate w/Strategic & Foreign Relations Practice at Rashtram

This article was published in the ORF Online

Image Source: ORF Online

इंडो-पैसिफिक से संबंधित विचार-विमर्श ज्य़ादातर अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों पर केंद्रित हैं – जिन्हें सामरिक विशेषज्ञ ‘क्वॉड’ (चतुर्भुज) बुलाते हैं. हालांकि, ये महत्वपूर्ण है, लेकिन ये फ्रांस जैसी यूरोपीय शक्तियों की अनदेखी करता है, जिनके पास न केवल महत्वपूर्ण क्षमताएं हैं बल्कि इस क्षेत्र में पर्याप्त सामरिक व आर्थिक  हित भी हैं. फ्रांस की हाल ही में  शुरू की गई रक्षा नीति इंडो-पैसिफिक के संबंध मे ‘एक क्षेत्रीय सुरक्षा-कूटनीतिक ढाँचा का निर्माण करने में सहयोग और योगदान’ करने की उसकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है. यह दस्तावेज़ स्पष्ट रूप से भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, मलेशिया, सिंगापुर, न्यूजीलैंड, इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देशों को सूचीबद्ध करता है जिनके साथ फ्रांस रणनीतिक साझेदारी का एक नेटवर्क विकसित कर रहा है.

फ्रांस के इंडो-पैसिफिक रणनीति में मोटे तौर पर पारंपरिक और गैर-पारंपरिक दोनों तरह के खतरों से समुद्री नौवहन लेन का संरक्षण, बहुपक्षवाद को मज़बूत करना और सार्वजनिक वस्तुओं जिसे अंग्रेज़ी में कॉमन गुड कहते हैं जैसे (पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, डिजिटल प्रौद्योगिकी आदि) के प्रति प्रतिबद्धता शामिल है. इंडो-पसिफ़िक में फ्रांस एक ऐसी शक्ति है, जिसके भारत और प्रशांत महासागर के दोनों तरफ क्षेत्र मौजूद है. इन क्षेत्रों के नाम हैं: मैयट और ला रे संघ द्वीप, स्कैटर्ड द्वीप समूह, फ्रांसीसी दक्षिणी और अंटार्कटिक क्षेत्र, न्यू कैलेडोनिया, वालिस और फ़्यूचूना, फ्रेंच पोलिनेशिया और क्लिपर्टन ( नक्शा-1 देखें) फ्रांसीसी राजनयिक मामलों के मंत्रालय के अनुसार, “इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में  फ्रांस का 93 फीसदी विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, 1.5 मिलियन आबादी और 8,000 सैनिक तैनात है.।

दिलचस्प बात यह है कि नई दिल्ली जैसी ही इंडो-पैसिफिक की फ्रांस की अवधारणा अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर अमेरिका के पश्चिमी तटों तक फैली हुई है. बहुपक्षीयवाद, मुक्त और खुली सी-लाइंस ऑफ कम्युनिकेशंस (एसएलओसी) के प्रति साझा प्रतिबद्धता के साथ सामरिक हितों पर संमिलन नई दिल्ली और पेरिस को भारत-प्रशांत (इंडो –पैसिफिक) क्षेत्र में एक प्राकृतिक भागीदार बनाता है. हिंद महासागर में दोनों देशों की संयुक्त सामरिक दृष्टि “शांति, सुरक्षा, स्थिरता सुनिश्चित करने और हिंद महासागर क्षेत्र में उच्च आर्थिक विकास सह समृद्धि लाने” में भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी की बहुआयामी भूमिका को रेखांकित करती है. दोनों देश 1998 से रणनीतिक मुद्दों पर सहयोग कर रहे हैं- जब वे रणनीतिक भागीदार बने. पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद में, रणनीतिक वार्ता से भारत ने फ्रांस को और इसके माध्यम से यूरोपीय संघ के देशों को अपनी सुरक्षा चिंताओं के प्रति जागरूक और बाद में प्रतिबंधों पर उनके रुख़ को पुनर्विचार करने  को मनाया. पुलवामा हमले के ज़िम्मेदार आतंकवादी मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगवाने मे फ़्रांस ने अहम भूमिका निभाई.  हाल ही में भारत द्वारा कश्मीर मे किए गए संवैधानिक बदलाव पर भी फ्रांस  का रुख़ भारत के पक्ष मे रहा.

फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन के 2018 दिल्ली दौरे के दौरान, दोनों देशों ने लॉजिस्टिक्स विनिमय समझौता पर हस्ताक्षर किया. अमेरिका के बाद फ्रांस दूसरा ऐसा देश है जिसके साथ भारत ने इस तरह का समझौता किया है.

फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन के 2018 दिल्ली दौरे के दौरान, दोनों देशों ने लॉजिस्टिक्स विनिमय समझौता पर हस्ताक्षर किया. अमेरिका के बाद फ्रांस दूसरा ऐसा देश है जिसके साथ भारत ने इस तरह का समझौता किया है. दोनों देशों की सेना, नौसेना और वायुसेना नियमित रूप से संयुक्त अभ्यास करते हैं, जिनका नाम है- ‘शक्ति ‘, ‘ वरुण ‘ और ‘गरुड़ ‘. जहां तक ​​हथियार प्रणाली का सवाल है, फ्रांसीसी और भारतीय कंपनियां संयुक्त रूप से उत्पादन में शामिल हैं. उल्लेखनीय प्रणालियों में ‘स्कॉर्पीन’ श्रेणी की पनडुब्बी शामिल है, जिसके अंतर्गत हाल ही में आईएनएस वेला नौसेना को सोंपा गया.। इसी तरह, राफेल एक घरेलू नाम बन गया है जिसे घोर राजनीतिक विरोध के बावजूद वायुसेना के बेड़े में शामिल किया गया. शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए अंतरिक्ष के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ रहा है सीनेस (CNES) और इसरो (ISRO) ने उपग्रहों के समूह के विकास और उत्पादन को शुरू करने के लिए सहमति व्यक्त की है जो समुद्र  में जहाज़ों  पर निरंतर नज़र रखने में कारगर होगा. दोनों देशों के बीच व्यापार 2009 की तुलना में लगभग 6 बिलियन अमेरीकी डॉलर से बढ़कर 2019 में 12.86 बिलियन अमेरीकी डॉलर हो गई है. फ्रांस, भारत में शीर्ष के दस निवेशकों मे से एक है, मार्च 2018-19 तक लगभग 2.8 बिलियन अमेरीकी डॉलर का निवेश भारत में फ्रांस की तरफ से किया गया. वास्तव में, सिंगापुर और मॉरीशस एक मंच मात्र है जिसके माध्यम से निवेश किया जाता है, इसलिए यह मान लेना सुरक्षित है कि फ्रांस आठवां सबसे बड़ा निवेशक है. ये सभी बिंदु भारत-फ्रांस संबंधों में मज़बूती व गहराई की ओर इशारा करते हैं.

2018 में ऑस्ट्रेलिया की अपनी यात्रा पर, फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन ने इंडो-पैसिफिक में चुनौतियों और चीन की मुखरता के मद्देनजर एक पेरिस-दिल्ली-कैनबरा अक्ष (एक्सिस) का प्रस्ताव रखा. राष्ट्रपति मैक्रोन के वक्तव्य अनुसार ” यदि हम चीन के बराबर भागीदार के रूप में दिखना और सम्मान चाहते हैं, तो हमें (फ़्रांस – भारत – ऑस्ट्रेलिया ) खुद को व्यवस्थित करना चाहिए”. फ्रांस-भारत-ऑस्ट्रेलिया  के लोकतांत्रिक मूल्यों व इंडो – पैसिफ़िक में सामरिक हितों में अनुरूपता दिखता है. फ्रांस, इमैनुएल मैक्रॉन के नेतृत्व में चीन के प्रति सख्त़ी दिखा रहा है, मैक्रॉन के इस रणनीति  को  यूरोपीय संघ में फ्रांस को अग्रणी शक्ति के रूप में स्थापित करने के दिशा में प्रयास की तरह भी देख सकते हैं. फ्रांस दक्षिण चीन सागर में चीन के एकतरफा दावे को चुनौती देता रहा है. मई महीने के आखिर में, फ्रेंच जंगी जहाजों ने दक्षिण चीन सागर के विवादित स्प्राटली द्वीप में गश्ती की. पैसिफिक द्वीपों में चीन द्वारा सैन्य ठिकानों के निर्माण संबंधी ख़बरों ने फ्रांस व ऑस्ट्रेलिया दोनों को परेशानी में डाल दिया है. हाल ही में, बीजिंग स्थित एक कंपनी ने सोलोमन द्वीप में टुलगी के विकास के लिए विशेष अधिकार प्राप्त किए हैं. दिलचस्प बात यह है कि सोलोमन द्वीप  ने बीजिंग की राह पर चलते हुए समझौते से पहले ताइवान से अपने सारे राजनयिक संबंध तोड़ लिए. इसके बाद किरिबाती-एक और प्रशांत द्वीप ने भी यही किया. इसलिए इंडो-पैसिफ़िक में वैकल्पिक कूटनीतिक ढांचे की तलाश व प्रयास, इस क्षेत्र को किसी तरह के एकाधिकार वाले प्रभाव से बाहर रखने की कोशिश है.

फ़्रांस व भारत ने पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में साझा विकास संबंधी परियोजनाओं मे निवेश करने का निर्णय लिया है. जिसके तहत दोनों देशों ने वनीला द्वीप जिसमें कोमोरोस, मेडागास्कर, और सेशेल्स शामिल हैं, उनको को चुना है.

फ्रांस पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में भी अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को आगे बढ़ा रहा है. यह हाल ही में फ्रांस द्वारा आयोजित प्रमुख़ बिज़नेस २ बिज़नेस मेला – ‘महत्वाकांक्षा अफ्रीका‘ का लक्ष्य  फ्रांसीसी कंपनियों को अफ्रीका में विस्तार करने के लिए सहयोग करना था. फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रॉन द्वारा खाड़ी अफ्रीकन देश जैसे की जिबूती, इथोपिया, कीनिया इत्यादि की यात्रा  पेरिस की सामरिक व आर्थिक हितों के लिहाज़ से देखना ज़रूरी है. दौरे की आख़िरी चरण में फ्रांस और कीनिया के बीच परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में 3.4 बिलीयन अमेरिकी डॉलर का समझौता हुआ. इसके अतिरिक्त फ़्रांस व भारत ने पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में साझा विकास संबंधी परियोजनाओं मे निवेश करने का निर्णय लिया है. जिसके तहत दोनों देशों ने वनीला द्वीप जिसमें कोमोरोस, मेडागास्कर, और सेशेल्स शामिल हैं, उनको को चुना है. साझेदारी का उद्देश्य वनीला द्वीपों मे मोज़ाबिंक  चैनल के आसपास संसाधन संपन्न क्षेत्रों के सतत विकास के लिए बंदरगाह निर्माण, संपर्क और ऊर्जा अन्वेषण जैसे क्षेत्रों में पारदर्शी तरीके से काम करना है.

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में फ़्रांस की भारत व ऑस्ट्रेलिया जैसे समान सामरिक हित रखने वालों देशों के बीच  त्रिकोणिय साझीदारी की पहल, खुद को एक अग्रणी शक्ति साबित करने में मददगार होगी. ऐसा प्रतीत होता है की इंडो-पैसिफिक बहुपक्षीयय सुरक्षा, कूटनीतिक व राजनीतिक साझीदारियों से परिभाषित होगा. गौरतलब है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य मे अमेरिका और चीन के अलावा, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, फ्रांस, और अन्य ऐसे देश मौजूद हैं, जिनके पास राजनीतिक व कूटनीतिक पटल को प्रभावित करने की क्षमता है. विभिन्न शक्तियों का होना और अपने अनुरूप सामरिक माहौल को ढालने की कोशिश करना, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में और खॉसकर वृहद अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ती बहुध्रुवीयता की और इशारा करती है.